गुरुवार, 3 जून 2021

हिंदी, गुजराती और सिंधी के बालसाहित्यकार : डॉ. हूंदराज बलवाणी

 हिंदी, गुजराती और सिंधी के बालसाहित्यकार : डॉ. हूंदराज बलवाणी
टिप्पणी : डॉ. नागेश पांडेय 'संजय' 

     डॉक्टर हूंदराज बलवाणी जी हिंदी, गुजराती और सिन्धी बाल साहित्य  के सेतु पुरुष है;  उन्होंने कविता और कहानी : दोनों ही विधाओं में उच्च कोटि का बाल साहित्य लिखा और अनुवाद के माध्यम से भी उसे बच्चों तक पहुंचाया। बालसाहित्य के शोधकर्ता और पाठ्यपुस्तक अधिकारी के रूप में भी उनकी बड़ी भूमिका है।


     मेरा सौभाग्य है कि विगत 27 वर्षों से निरंतर उनके संपर्क में हूँ। 1994 में उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान  के निदेशक विनोद चंद्र पांडे द्वारा आयोजित सर्व भाषा बाल साहित्य समारोह में उनसे पहली बार भेंट हुई थी।..  और तब से निरंतर एक शुभचिंतक अग्रज की भांति उन्होंने मुझे अपना आशीर्वाद प्रदान किया है।

     कानपुर, दिल्ली, भीलवाड़ा आदि-इत्यादि अनेक स्थानों पर उनसे मिलना जुलना होता रहा। कानपुर में वे हम लोगों के लिए गुजराती मिठाई लेकर आए थे। अधिकार भाव से कहा था, 'नागेश, तुम सबसे छोटे हो इसलिए सबसे ज्यादा मिठाई खाओगे। मैं जलेबी जैसी उस गुजराती मिठाई का नाम तो भूल गया किंतु उसका स्वाद और दादा का अपनापन आज भी याद है। उन्होंने मेरी अनेक रचनाओं का हिंदी और गुजराती में अनुवाद किया।

      मैंने जब 2005 में 'किशोरों की श्रेष्ठ कहानियां' संकलन संपादित किया था तो उनकी 'मुकाबला' कहानी को आग्रहपूर्वक मंगाया था। उस संकलन का आवरण उनकी ही कहानी पर आधारित है। सभी कहानियों के साथ लेखकों के स्केच फ़ोटो भी प्रकाशित हुए थे। 

मुझे गुजराती नहीं आती लेकिन अपनी बेटी की मदद से मैंने उनके गुजराती बाल साहित्य का भी आनन्द प्राप्त किया है। 

मेरी ईश्वर से प्रार्थना है, हिंदी, गुजराती और सिंधी के वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. हूंदराज बलवाणी सदैव-स्वस्थ सानंद रहें। उनका आशीर्वाद सदैव हमें प्राप्त होता रहे।

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