पुस्तक : 'बिहार का हिंदी बाल साहित्य'
लेखक : डॉ. दिनेश प्रसाद साह(08409813802)
प्रकाशक : शब्द प्रकाशन,ए25, गणेश नगर, नई दिल्ली-92
मूल्य : 550/-
लेखक : डॉ. दिनेश प्रसाद साह(08409813802)
प्रकाशक : शब्द प्रकाशन,ए25, गणेश नगर, नई दिल्ली-92
मूल्य : 550/-
असीम सम्भावनाओं का उदघोष
- डॉ. नागेश पांडेय 'संजय'
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बिहार का नाम आते ही साहित्य के आकाश में जो नाम देदीप्यमान नक्षत्रों की तरह अपनी अदम्य आभा से युक्त उपस्थिति का आभास कराते हैं, वे हैं रामधारी सिंह 'दिनकर', रामवृक्ष बेनीपुरी, आरसी प्रसाद सिंह, गोपाल सिंह नेपाली, विष्णुकांत पांडेय, रामवचन सिंह आनन्द, राजनारायण चौधरी और भगवतीप्रसाद द्विवेदी। बिहार में बाल साहित्य के इन सप्त ऋषियों से हिंदी साहित्य का भाल उन्नत हुआ है और हर वह व्यक्ति जो बाल साहित्य से अनुराग रखता है, इनकी तपश्चर्या से गर्वोन्नत है।
बिहार में बाल साहित्य की साधना करनेवाले मनीषियों की सूची विस्तृत है। उनका प्रदेय अद्भुत है। उनका अवदान स्तुत्य है। उनकी भूमिका इतिहास का निर्माण करने की सामर्थ्य रखती है लेकिन इसे विडम्बना ही कहेंगे कि बाल साहित्य के क्षेत्र में बिहार के अविस्मरणीय योगदान को रेखांकित करता कोई ग्रन्थ अभी तक तक प्रतीक्षित ही था। यद्यपि इस संदर्भ में 'बाल हंस" पत्रिका के सम्पादक अनन्त कुशवाहा का सहज स्मरण स्वाभाविक है जिन्होंने वर्षों पूर्व अँधेरे में प्रकाश की किरण जैसा एक कार्य निष्पादित किया था। उन्होंने बिहार में रचे जा रहे उत्कृष्ट बाल साहित्य की बाँकी-बाँकी झाँकी प्रस्तुत करने के लिए 'बाल हंस' का एक विशेषांक ही प्रकाशित कर दिया था। जिसकी बड़ी प्रशंसा हुई थी। हिंदी बाल साहित्य के क्षेत्र में बिहार की उल्लेखनीय भूमिका रेखांकित करने की दृष्टि से वह सृष्टि अनुपमेय थी और इस बहाने बिहार में रचे जा रहे बालसाहित्य की अलक-झलक से कितने ही सुधी चातकों को तब स्वाति बूंद-सा अनुपमेय सुख मिला होगा, आज इसकी कल्पना कितनी सुखकर है !
डॉ. दिनेश प्रसाद साह की सराहना की जानी चाहिए; ..और एक बार नहीं, हजार बार, बार-बार की जानी चाहिए, जिनके अपूर्व उत्साह, अनथक प्रयत्न और अद्भुत समर्पण के फलस्वरूप बिहार के बालसाहित्यिक अवदान पर एक महत कार्य सम्पन्न हो सका। बिहार का हिंदी बाल साहित्य : सीमाएं एवं संभावनाएं एक गवेषणात्मक शोध है और आद्यांत डॉ. दिनेश जी की तत्वभिनिवेशी दृष्टि ने इसे स्थायी महत्ता प्रदान की है। इतनी दुर्लभ सामग्री उन्होंने संजो ली है कि बाल साहित्य के अधिकारी विद्वानों को भी अचरज होना स्वाभाविक है।
बाल साहित्य पर अनुसन्धान का सबसे बड़ा संकट ही यही है कि आधार सामग्री की अनुपलब्धता और उसके अप्राप्य होने की परिस्थितियों से प्रायः शोधकर्ता सरल-सहज और व्यक्ति विशेष के कृतित्व पर केंद्रित शोधकार्य में ही रूचि लेते हैं। हिंदी बाल साहित्य में ऐसे ही शोधों की भरमार है। दो सौ से अधिक शोध हो चुके होंगे लेकिन अधिकांश में गुणवत्ता का अभाव है। यही कारण है कि बाल साहित्य पर सम्पन्न ऐसे शोध भले ही उपाधि का माध्यम या व्यक्ति विशेष की संतुष्टि का कारण भले ही बनते हों लेकिन उनका कोई स्थायी महत्व नहीं होता।
व्यापक फलक को समेटे डॉ. दिनेश प्रसाद साह की स्थायी महत्व वाली इस शोध कृति का अध्ययन करते हुए मन बहुत भावुक हुआ है। किस तरह से उन्होंने अतीत की अँधेरी गुफाओं में यत्र-तत्र बिखरी सामग्री को एकत्र कर उसका सम्यक अनुशीलन किया है और इस प्रकार अनेक बाल साहित्य सेवियों के प्रति सच्ची श्रद्धांजलि ही नहीं अर्पित की है वरन उनका तर्पण भी किया है। ...और सच कहूं तो उन्हें जैसे पुनर्जन्म दिया है। भूले-बिसरे लेखकों की भी अनूठी सन्दर्भ रचनाओं का इस तरह एक ग्रन्थ के रूप में प्रस्तुत हो जाना हिंदी बाल साहित्य के लिए बड़ी उपलब्धि तो है ही, बिहार के लिए भी गौरव का विषय है।
डॉ. दिनेश प्रसाद ने सामयिक सृजन पर भी पैनी दृष्टि रखते हुए प्रतिष्ठित और उदीयमान सभी रचनाधर्मियों के कृतित्व का समादर किया है।
बिहार से पूर्व छत्तीसगढ़, कानपुर, हरियाणा, रुहेलखण्ड, मध्यप्रदेश, राजस्थान, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखण्ड आदि क्षेत्रों के बालसाहित्य पर भी शोधकार्य हो चुके हैं। अन्य राज्यों में भी ऐसे कार्यों के लिए असीम संभावनाओं के द्वार अभी खुले हैं। आशा की जानी चाहिए कि डॉ. दिनेश प्रसाद साह के इस प्रदेय से प्रेरणा का एक नया परिवेश निर्मित हो सकेगा। बाल साहित्य के उज्ज्वल भविष्य के प्रति आश्वस्त करते उनके इस उदघोष की मैं सराहना करता हूँ।
कामना करता हूँ कि बिहार के बाल साहित्य का ऐतिहासिक विवेचन प्रस्तुत करती यह कृति खूब लोकप्रिय हो। हिंदी बाल साहित्य के जिज्ञासुओं हेतु एक अमोल उपहार भेंट करने के लिए डॉ. दिनेश प्रसाद साह को बधाई, बार-बार बधाई।
(पुस्तक की भूमिका)
सार्थक व स्तुत्य प्रयास। हार्दिक बधाई
जवाब देंहटाएं*राजकुमार जैन राजन